झारखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ी राहत मिली है। सर्वोच्च न्यायालय ने सारंडा वन क्षेत्र के 31,468.25 हेक्टेयर इलाके को वन्यजीव अभयारण्य (सैंक्चुअरी) घोषित करने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने साथ ही यह स्पष्ट किया कि सेल (SAIL) और अन्य वैध खनन लीज वाले क्षेत्र इस सैंक्चुअरी की परिधि से बाहर रहेंगे। राज्य सरकार को एक सप्ताह के भीतर इस संबंध में शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया गया है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने सुनाया।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने राज्य सरकार से यह सवाल किया कि पहले राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा तय क्षेत्रफल की तुलना में सैंक्चुअरी का दायरा क्यों बढ़ाया गया है। इस पर राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बताया कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) ने इस क्षेत्र के अध्ययन के लिए आठ वर्ष का समय और लगभग तीन करोड़ रुपये का बजट मांगा था। अध्ययन के बाद संस्थान ने अपनी रिपोर्ट और नक्शा सौंपते हुए लगभग 5,519.41 हेक्टेयर क्षेत्र को सैंक्चुअरी घोषित करने की सिफारिश की थी।
यह प्रस्ताव वन विभाग की कई औपचारिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) के पास पहुंचा, लेकिन उस समय इसे सरकार की मंजूरी नहीं मिली। बाद में NGT के निर्देशों का पालन करते हुए सरकार ने 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को सैंक्चुअरी घोषित करने का निर्णय लिया और सुप्रीम कोर्ट से इसकी स्वीकृति मांगी।
वहीं, Amicus Curiae ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि 31,468.25 हेक्टेयर का यह इलाका पहले से ही 126 कम्पार्टमेंट्स में विभाजित है जहां किसी भी प्रकार का खनन कार्य नहीं हो रहा। इसलिए, क्षेत्र को पुनः चिन्हित करने की आवश्यकता नहीं है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार की मांग को स्वीकार करते हुए 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को सैंक्चुअरी घोषित करने की अनुमति दे दी। साथ ही SAIL की याचिका पर यह भी स्पष्ट किया गया कि मौजूदा खनन गतिविधियां सैंक्चुअरी के कारण बाधित नहीं होंगी, क्योंकि खनन पर रोक केवल सैंक्चुअरी की सीमा से एक किलोमीटर के दायरे में लागू होगी।