दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने के लिए ऐसे वाणिज्यिक वाहनों की प्रवेश पर रोक लगाई गई है, जो बीएस-6 (BS-VI) उत्सर्जन मानकों को पूरा नहीं करते। यह आदेश मंगलवार को एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन द्वारा जारी किया गया।
इसी बीच, राजधानी में कुछ ही समय में क्लाउड सीडिंग का पहला परीक्षण किया जाएगा। इस प्रयोग के लिए कानपुर से विशेष विमान 'सेसना' रवाना हुआ है। अनुमान है कि यह कृत्रिम वर्षा उत्तर दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र में की जाएगी।
दिल्ली की वायु गुणवत्ता में हल्की सुधार की खबर भी आई है। मंगलवार सुबह एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 306 दर्ज किया गया, जो सोमवार के 315 से थोड़ा बेहतर है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के मुताबिक, यह गिरावट होने के बावजूद, दिल्ली की हवा अभी भी ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बनी हुई है।
क्लाउड सीडिंग के लिए DGCA ने पहले ही अनुमति दे दी थी। 23 अक्टूबर को राज्य सरकार ने राजधानी में पहली बार सफल कृत्रिम वर्षा परीक्षण किया था। दिवाली के बाद से वायु गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आई है और अभी भी दिल्ली की हवा ‘बेहद खराब’ है।
दिल्ली सरकार का लक्ष्य है कि सर्दियों में बढ़ते प्रदूषण से पहले हवा की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके। यह प्रयास 'एन्वायर्नमेंट एक्शन प्लान 2025' का हिस्सा है। ट्रायल से प्राप्त डेटा भविष्य में बड़े स्तर पर क्लाउड सीडिंग को लागू करने में मदद करेगा।
भारत में इससे पहले भी कई बार क्लाउड सीडिंग की जा चुकी है। सबसे पहले यह 1983 और 1987 में प्रयोग की गई थी। 1993-94 में तमिलनाडु सरकार ने सूखे की समस्या को दूर करने के लिए इसे अपनाया। 2003 में कर्नाटक और बाद में महाराष्ट्र में भी क्लाउड सीडिंग की गई।
एक अध्ययन में पाया गया कि महाराष्ट्र के सोलापुर में क्लाउड सीडिंग से सामान्य बारिश की तुलना में 18% अधिक वर्षा हुई। यह प्रक्रिया सिल्वर आयोडाइड या कैल्शियम क्लोराइड जैसे कणों को बादलों में फैलाकर बारिश बढ़ाती है। 2017 से 2019 के बीच 276 बादलों पर यह प्रयोग किया गया, जिसे रडार, विमान और स्वचालित वर्षामापी से मापा गया।
स्टेज I 'खराब' (AQI 201-300)
स्टेज II 'बहुत खराब' (AQI 301-400)
स्टेज III 'गंभीर' (AQI 401-450)
स्टेज IV 'गंभीर प्लस' (AQI >450)
अभी GRAP-I लागू है, जिसके तहत लोगों को N95 या डबल सर्जिकल मास्क पहनने की सलाह दी जाती है। GRAP-I सक्रिय होने पर एनसीआर में 27 निवारक उपायों को सख्ती से लागू किया जाता है। इनमें एंटी-स्मॉग गन का उपयोग, पानी का छिड़काव, सड़क निर्माण और मरम्मत परियोजनाओं में धूल नियंत्रण शामिल है।